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वो झूद भी बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं एइत्बार ना करता तो क्या क्या करता,,,,,
मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया उसको भी मुझे छौड के जाना नहीं आता.,,,,,
सहारा लेना ही पड़ता है मुझको दरिया का मैं इक कतरा हूँ तनहा तो बह नहीं सकता.!!!!,,,,
जिंदगी में खूब कमाया, क्या हीरे क्या मोती, क्या करूँ मगर कफ़न में जेबें नहीं होती,,,,,
जवानी जाती रही और हमें पता भी ना चला, उसी को ढूंढ रहे हैं, कमर झुकाए हुए,,,,,
वो अपने आप को बेहतर शुमार करता है, अजीब शख्स है, अपना ही शिकार करता है,,,,,
ले के उस पार ना जायेगी जुदा राह कोई, भीड़ के साथ ही दलदल में उतरना होगा,,,,,
अँधेरा कब्र का इतने में ही खुश है, की जलता है कोई ऊपर दिया तो,,,,,
जनम मरण का साथ था जिनका, उन्हें भी हमसे बैर, वापिस ले चल अब तो हमे, हो गयी जग की सैर,,,,,
अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ, जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला,,,,,
ना समझने की ये बातें हैं, ना समझाने की, ज़िन्दगी उचटती हुयी नींद है दीवाने की,,,,,
आज आगोश में था और कोई, देर तक हम तुझे न भुला सके,,,,,
अचानक चौंक उठा हूँ, जिस दम पड़ी है आँख, आये तुम आज भूली हुयी याद की तरह,,,,,
ना समझने की ये बातें हैं, ना समझाने की, ज़िन्दगी उचटी हुयी नींद है दीवाने की,,,,,
दिल मुझे तितली का टूटा हुआ पर लगता है, अब तेरा नाम भी लिखते हुए डर लगता है,,,,,
ज़िन्दगी से जो भी मिले, सीने से लगा लो, गम को सिक्के की तरह उछाला नहीं करते,,,,,
साहिल से सकूँ से किसे इनकार है लेकिन, तूफ़ान से लड़ने में मज़ा ही कुछ और है,,,,,
मेरे गम ने होश उनके भी खो दिए, वो समझाते-सम्झाते खुद ही रो दिए,,,,,
जाती है धूप उजले परों को समेट के, ज़ख्मों को अब गिनूंगा मैं बिस्तर पे लेट के,,,,,
कांच की गुडिया ताक में कब तक सजाये रखेंगे, आज नहीं तो कल टूटेगा, जिसका नाम खिलौना है,,,,,
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद है, देखना है, फेंकता है मुझ पर पहला तीर कौन,,,,,
मैंने कहा कभी सपनो में भी शक्ल ना मुझको दिखाई, उसने कहा, मुझ बिन भला तुझको नींद ही कैसे आई,,,,,